Sunday, February 12, 2012

छूटा वक्त

हर छूटा वक्त एक दास्तान कहता है ,
कभी तेरी तो कभी मेरी कहानी कहता है
पल में जो ओझल हो गये परिंदे ,
उन परिंदों के राह की अगवाई देता है,
बचपन में न कोई ख्वाब होता है न कोई संघर्ष होता है,
अनगिनत मासूम सवालो का इक जाल होता है,
घर में माँ बाप के आगे ,
स्कूल में टीचर के आगे बेहाल होता है,
उन नन्हे हांथो में न जाने क्या क्या लिखा होता है,
कॉपी किताब में कम , शर्ट में पेन स्केच से लिखा एक इतिहास होता है,
लंच तो न जाने कब होता है ,
लंच टाइम में तो सिर्फ चोर पुलिस का खेल होता है,
चाट ,बरफ के ठेलो पे तो लगते है मेले,
हमे तो रहती थी कसमकस की मेरे दोस्तों में,
कौन क्या ले रहा होता है,
हम करते थे चुम्बक और खिलौनों की डील,
,उसी बहाने चाट का स्वाद चखना होता है,
हर उम्र एक सपना देती है ,
कभी खट्टा तो कभी मीठा देती है,
जब बक्सों ,अलमारी से निकलते है पुराने कपडे तो मेरा दिल बस यही कहता है
हर छूटा वक्त एक दास्तान कहता है ,
कभी तेरी तो कभी मेरी कहानी कहता है......
-सोलंकी मैंडी

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