Sunday, May 6, 2012

माँ

आज मेरी आंखे भर आती है ये सोच के,
माँ मारती थी मुझे अपनी चप्पल से और मैं हँसता जाता था,
वो साफ़ करती थी बिस्तर रोज और मैं कूद कूद के उसपे निशान बना आता था ,
वो करती थी मेरा होमवर्क और मैं कॉपी पे चील बिलौए बनाता था ,
वो परोसती थी खाना मेरी लिए और मैं बिना बताए भाग जाता था,
माँ बोलती थी पापा से शिकायत करने को और,
मैं बिना पिटे रो रो के उनके आँचल से लिपट जाता था ,
माँ जब होती थी रसोई से बाहर और मैं चुरा चुरा कर सामान खाता था,
माँ सिखाती थी मुझे पढाई की बाते और मैं रोनी सूरत बना बैठ जाता था,
माँ आज भी करती है मेरे फोन का इन्तजार और मैं उन्ही से बात करना भूल जाता हूँ,
आज मेरी आंखे भर आती है ये सोच के,
माँ मारती थी मुझे अपनी चप्पल से और मैं हँसता जाता था.....

-सोलंकी मैंडी

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