Sunday, April 29, 2012

अनकही-१

   रात के २ बज कर ४१ मिनट हुए हैं, आँखों में दूर दूर तक नींद का कोई नामो निशान नहीं नजर आ रहा | मेरी उम्र के लोगों में यह बात काफी सामान्य है, रात को देर से सोना, सुबह देर से उठना, इस बारे में मैं भी अन्य लोगों से अलग नहीं हूँ | अरे , मैं आपको अपने बारे में बताना तो भूल ही गया, मेरा नाम अरमान  है, मैं दिल्ली में रहता हूँ, नहीं , परिवार के साथ नहीं, दोस्तों के साथ | मैं यहाँ अपनी पढाई पूरी करने के लिए आया हूँ | आप लोग इस गलतफहमी में मत रहिएगा की मैं किसी अमीर घराने से ताल्लुक रखता हूँ, मैं एक साधारण परिवार से हूँ, और घर से जबरदस्ती यहाँ आया हूँ जिससे मैं कुछ काम करके अपनी पढाई का खर्च भी उठा सकूँ, जोकि मेरे छोटे से गांव में संभव नहीं था | आप लोग बोर हों रहे होंगे मेरी वही पकाऊ से फिल्मी कहानी सुन कर, चलिए मुद्दे पर आता हूँ, पर मुद्दा तो कुछ  नहीं है, मैं कोई लेखक भी नहीं हूँ, बस यूँ ही थोडा बहुत लिख लेता हूँ मन बहलाने के लिए, वैसे भी मेरे जैसों के लिए लेखनी ही मन बहलाने का साधन बन जाती है, और आज ही इस ब्लॉग के व्यवस्थापक महोदय ने मेरी कुछ कहानियो को सुनकर कर मुझे लेखकों में शामिल कर लिया तो मैंने मन यही बहलाने का निश्चय किया | 
   तो जैसा की जहाँ से मैंने शुरू किया था, नींद का नामो निशान अभी भी कहीं नज़र नहीं आ रहा | रात की ख़ामोशी  से मेरे कंप्यूटर के कीबोर्ड की खट खट की आवाज का युद्ध बदस्तूर जारी है, आज दिल्ली का मौसम कुछ ठंडा सा है, कीबोर्ड की खट खट का साथ अब आसमान में गरजते हुए बादल भी देने लगे हैं, ख़ामोशी अकेली पड़ रही है बीच में कुछ अजीब से पक्षियों के चीखने की आवाज भी सुनाई दे जाती है, दिल्ली बहुत अनोखा शहर है, यहाँ पर आपको सब कुछ मिलेगा, जी हाँ कुछ भी, बस मायने यह रखता है की आप पाना क्या चाहते हैं | मैं भी कुछ पाने के लिए ही यहाँ आया हूँ , खोने के लिये आता ही कौन है, सब पाने के लिए ही आते हैं, पर इस शहर में खोने के लिए भी बहुत कुछ मिल ही जाता है, घडी में ३ बज कर ३ मिनट हों चुकें हैं और आँखे भी कुछ बोझिल से हों रही हैं | लगता है ख़ामोशी ने नींद से कुछ सांठ गाँठ कर ली है, अब मुझे भी ये ख़ामोशी बहुत अच्छी लग रही है, मैं भी ख़ामोशी का साथ देने जा रहा हूँ, फिर मिलूँगा किसी अनींदी सी रात में......

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