Sunday, April 1, 2012

मंज़र

तनहाइयों की आदत हों गयी है अब हमें,
खामोशियों का शोर बड़ी जोर सुनाई देता है,
छाई हैं कुछ इस क़दर यादें तुम्हारी,
आँखों में हर लम्हा समुन्दर दिखाई देता है,
मासूमियत तुम्हारी अभी भी जवान हैं आँखों में,
चेहरे पर,मगर कुछ और दिखाई देता है,
भूलना इतना भी आसान नहीं जैसा सोचा था,
जाने क्यों सब कुछ बड़ी दूर दिखाई देता है,
दूरियां अक्सर नजदीकियां बढ़ा देती हैं,सुना था,
मगर नजदीकियों में सब धुआं धुआं सा दिखाई देता है,
मोहब्बत आखिर किस शै का नाम है,
कभी सोचूं तो दर्द का मंज़र दिखाई देता है,
तनहाइयों की आदत हों गयी है अब हमें,
खामोशियों का शोर बड़ी जोर सुनाई देता है.....
-सूरज

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