Friday, May 18, 2012

दिल की


दिल की सुनी तो पछताया ,दिल से सुनी तो पछताया
दिल जो लगाया था उनसे तो इस दिल की लगी से पछताया,तो कभी इस दिल्लगी से पछताया 
जब न किया था प्यार तो इस दर्द-ए-दिल को पछताया,जब कर बैठा इकरार तो इस दिल के फसने पे पछताया
कभी उनकी बेरूखी पे पछताया,कभी उनकी बेवफाई पे पछताया
जब मिटा बैठे है खुद को उन पे तो इस जिंदगी से पछताया,जब मिल न सका वो तो उस मौत को भी पछताया
जब अकेले थे सफर में तो पछताया, तो कभी बिन हमसफ़र के पछताया
कभी खुद के इजहार न कर पाने पे पछताया,तो कभी उनके इनकार के डर से पछताया
कभी दिल के दिल में रहने पे पछताया,अब जो ना रहा ये अपना तो इसके खोने पे पछताया
जब सोचा हूँ उन बातो को तो पछताया,अब हूँ इन बातो में अकेला तो पछताया
दिल की सुनी तो पछताया ,दिल से सुनी तो पछताया 

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