समुंदर
की इन लहरों ने मेरे कानो तक ये दस्तक दी
न
जीती हूँ न मरती हूँ न कहती हूँ न सुनती हूँ
पर
बाहें पसारे आज भी उस किनारे से में मिलती हूँ
न
सोचती हूँ न समझती हूँ न किसी की बात में सुनती हूँ
न
जो मिल पाता महबूब मेरा उस किनारे पे मर मिटती हूँ .
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